मनप्रीत सिंह एक सुनसान गली से अपनी साइकल पर जा रहा था। अचानक किसी लड़की के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देती है। मनप्रीत अपनी साइकल उसी दिशा में दौड़ा देता है। वह देखता है कि कुछ गुंडे एक लड़की की इज़्ज़त लूटने की कोशिश कर रहे है। मनप्रीत उन पर अपनी साइकल चढ़ा देता है, और कुछ देर में सारे गुंडों की गाँड़ फाड़ देता है। गुंडे वहाँ से रफ़ू चक्कर हो जाते हैं। मनप्रीत उस नंगी लड़की को अपनी साइकल के आगे वाले डंडे पर बिठाता है और उसे घर छोड़ आता है।
घर पहुँचकर लड़की अपने कपड़े पहनती है, और मनप्रीत को चाय पिलाती है। जब मनप्रीत जाने लगता है तो लड़की उससे पूछती है, "आपने मुझे बचाया तो देखा मैं बिल्कुल नंगी थी, फिर भी आपने मेरी इज़्ज़त लूटने की कोशिश नहीं की? क्या नंगी लड़की देखकर भी आपके मन में पाप नहीं आया?"
मनप्रीत सिंह बोला, "भैण दी टक्की, तो तू किस पर बैठ के घर पहुँची, मेरे पास तो लेडीज़ साइकल है, वो डंडा क्या था, जिस पर तू इतनी देर बैठी थी?"
घर पहुँचकर लड़की अपने कपड़े पहनती है, और मनप्रीत को चाय पिलाती है। जब मनप्रीत जाने लगता है तो लड़की उससे पूछती है, "आपने मुझे बचाया तो देखा मैं बिल्कुल नंगी थी, फिर भी आपने मेरी इज़्ज़त लूटने की कोशिश नहीं की? क्या नंगी लड़की देखकर भी आपके मन में पाप नहीं आया?"
मनप्रीत सिंह बोला, "भैण दी टक्की, तो तू किस पर बैठ के घर पहुँची, मेरे पास तो लेडीज़ साइकल है, वो डंडा क्या था, जिस पर तू इतनी देर बैठी थी?"
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